भारतीय आचार्यो के सिद्धांत MCQ Quiz - Objective Question with Answer for भारतीय आचार्यो के सिद्धांत - Download Free PDF

Last updated on Jun 12, 2025

Latest भारतीय आचार्यो के सिद्धांत MCQ Objective Questions

भारतीय आचार्यो के सिद्धांत Question 1:

काव्य में अलंकार संप्रदाय का आदि प्रवर्तक किसे माना जाता है?

  1. आचार्य विश्वनाथ
  2. भामह
  3. भरत मुनि
  4. आनन्द वर्धन
  5. उपर्युक्त में से कोई नहीं

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : भामह

भारतीय आचार्यो के सिद्धांत Question 1 Detailed Solution

सही उत्तर 'भामहहैं।

  • 'आचार्य भामह को 'अलंकार सम्प्रदाय' का प्रवर्तक माना जाता है।
  • आचार्य भामह संस्कृत भाषा के सुप्रसिद्ध आचार्य थे।
  • आचार्य भरतमुनि के बाद प्रथम आचार्य भामह ही हैं काव्यशास्त्र पर काव्यालंकार नामक ग्रंथ उपलब्ध है।
  • यह अलंकार शास्त्र का प्रथम उपलब्ध ग्रन्थ है। जो विंशति (२०वी) शताब्दी के आरंभ में प्रकाशित हुआ था।
  • इन्हें अलंकार संप्रदाय का जनक कहते हैं।
  • ""शब्दार्थौ सहितौ काव्यम्" इनकी सर्वाधिक प्रसिद्ध काव्य परिभाषा है।

Key Points
 अन्य विकल्पों का विश्लेषण:

  • आचार्य विश्वनाथ - साहित्यदर्पण इस ग्रन्थ के कर्ता कविराज विश्वनाथ के पिता का नाम चन्द्रशेखर है, जिसका उल्लेख इसी ग्रन्थ के दूसरे और दसवें परिच्छेद में मिलता है।
  • विश्वनाथ अपने पिता के पश्चात् दूसरे भानुदास के काल में सन्धिविग्रहक ऐसा काम करते थे।
  • इसके अनुसार विश्वनाथ का काल ई. स. १२५० से १३२० था।
  • कविराज पदवी प्राप्त करने वाले आचार्य विश्वनाथ के नाम पर साहित्यदर्पण सहित 9 कलाकृति है।
  • भरतमुनि को संस्कृत काव्यशास्त्र का प्रथम आचार्य माना जाता हैI
  • धर्म,अर्थ,आयु-साधक,हितकर,बुद्धि-वर्धक और लोक उपदेश को काव्य प्रयोजन माना है।
  • आनन्दवर्धन का समय नवीं शती का मध्य है।
  • इन्होंने व्यंग्यार्थ के तारतम्य के आधार पर काव्य के तीन भेद किये हैं-ध्वनि,गुणिभूत व्यंग,चित्र।
  • उन्होंने व्यंजना को काव्य के लिए अपरिहार्य माना इसीलिए उन्हें 'ध्वनि प्रतिष्ठापक परमाचार्य' कहा जाता है।​

भारतीय आचार्यो के सिद्धांत Question 2:

भवभूति का काल सामान्यतः किस शताब्दी से जोड़ा जाता है?

  1. 5वीं शताब्दी
  2. 7वीं-8वीं शताब्दी
  3. 10वीं शताब्दी
  4. 12वीं शताब्दी

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : 7वीं-8वीं शताब्दी

भारतीय आचार्यो के सिद्धांत Question 2 Detailed Solution

सही उत्तर है- 7वीं-8वीं शताब्दी

 

  • भवभूति का काल 7वीं-8वीं शताब्दी माना जाता है। वे कन्नौज के राजा यशोवर्मन के दरबार से जुड़े थे, जो इस काल में शासन करते थे।

भारतीय आचार्यो के सिद्धांत Question 3:

'नकान्तामपिनिर्भूषंविभातिवनितामुखम्' अलंकार के संबंध में यह कथन किस आचार्य का है?

  1. भामाह
  2. दण्डी
  3. जयदेव
  4. वामन

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : भामाह

भारतीय आचार्यो के सिद्धांत Question 3 Detailed Solution

'नकान्तामपिनिर्भूषंविभातिवनितामुखम्' अलंकार के संबंध में यह कथनआचार्य का है- भामाह

Key Points

  • अर्थात् बिना अलंकारों के काव्य उसी प्रकार शोभित नहीं हो सकता जिस प्रकार किसी सुन्दर स्त्री का मुख बिना अलंकारों के शोभा नहीं पाता।
  • भामह ने 35 अलंकारों को निर्दिष्ट किया है, जिनमें उपमा, रूपक, श्लेष इत्यादि को प्रधान अलंकार है।

Important Pointsआचार्य भामह के अनुसार-

  • “वक्रभिधेय शब्दोक्तिरिष्टा वाचामलंकृति।”
    • अर्थात् उक्ति वैचित्र्य युक्त शब्द अलंकार है।

दंडी के अनुसार- 

  • “काव्याशोभाकारान धर्मान् अलंकारान प्रचक्षेते”
    • अर्थात् काव्य की शोभा बढाने वाले धर्म को अलंकार कहते हैं।
  • इन्होंने 36 अलंकारों का विवेचन करते हुए ‘अतिशयोक्ति’ को अलग अलंकार निरुपित किया है।

आचार्य जयदेव के अनुसार –

  • “अंगीकरोति य: काव्यं शब्दार्थावनलंकृति।
    असौ न मन्यते कस्मादनुषणमनलं कृती।।
    • जो अलंकार रहित शब्दार्थ को ही काव्य मानता है वह अग्नि को शीतल क्यों नहीं मान लेता है अर्थात् जिस तरह अग्नि शीतल नहीं हो सकती वैसे ही अलंकारों के बिना काव्य की रचना नहीं हो सकती है।

वामन के अनुसार – 

  • “काव्यशोभाया: कर्तारो धर्मा गुणा:।”
    • यदि काव्य की शोभा कारक धर्म है, तो अलंकार उस शोभा को बढ़ानेवाला है।
  • इन्होंने काव्य में गुण को ‘नित्य’ और अलंकार को ‘अनित्य’ स्थान दिया है।
  • आचार्य वामन ने सौंदर्य को ही अलंकार कहा है – ‘सौंदर्यमलंकार:’
  • इन्होंने सर्वप्रथम अलंकार के दो भेद किये –
    • शब्दालंकार
    • अर्थालंकार

भारतीय आचार्यो के सिद्धांत Question 4:

'प्रतिभा' काव्य हेतु से संबंधित पंक्तियों के रचनाकारों के सही युग्म कौन से हैं?

(A) तस्य च कारणं कविगता केवला प्रतिभा चा - वाग्भट्ट प्रथम

(B) प्रज्ञा नवनवोन्मेषशालिनी प्रतिभा मता - भट्टतौत

(C) कवित्वबीजं प्रतिभानम् - वामन

(D) प्रतिभा कारणं तस्य व्युत्पत्तिस्तु विभूषणम् - भामह

(E) काव्यं तु जायते जातु कस्यचित् प्रतिभावतः -आ० जगन्नाथ

नीचे दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर का चयन कीजिए:

  1. केवल (A), (B)
  2. केवल (C), (E)
  3. केवल (B), (C)
  4. केवल (B), (D)

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : केवल (B), (C)

भारतीय आचार्यो के सिद्धांत Question 4 Detailed Solution

सही उत्तर है- केवल (B), (C)

Key Pointsसही युग्म है-

पंक्तियाँ  रचनाकार 
तस्य च कारणं कविगता केवला प्रतिभा चा आ० जगन्नाथ
प्रज्ञा नवनवोन्मेषशालिनी प्रतिभा मता भट्टतौत
कवित्वबीजं प्रतिभानम् वामन 
प्रतिभा कारणं तस्य व्युत्पत्तिस्तु विभूषणम्  वाग्भट्ट प्रथम
काव्यं तु जायते जातु कस्यचित् प्रतिभावतः भामह 

Important Pointsपंडितराज जगन्नाथ-

  • समय- 17 वीं शताब्दी का उतरार्द्ध, ये आंध्रप्रदेश के रहने वाले थे।
  • रचना- ‘रसगंगाधर’
    • इन्होंने अपने ग्रन्थ ‘रस गंगाधर’ में प्रतिभा’ को ही प्रमुख काव्य हेतु स्वीकार किया है।
  • “तस्य च कारणं कविगता केवलं प्रतिभा’’
    • इन्होने प्रतिभा के दो भेद किया है।
      • अदृष्टोत्पत्ति प्रतिभा (जन्मजात प्रतिभा)
      • दृष्टोत्पत्ति प्रतिभा (अभ्यास से उत्पन्न प्रतिभा)
  • आचार्य जगन्नाथ भी प्रतिभा को ही काव्य का मूल हेतु मानते हैं | उन्होंने व्युत्पत्ति और अभ्यास को प्रतिभा के कारण माना है |

भट्टतौत​-

  • समय- 9 वीं शताब्दी
  • रचना- ‘काव्यकौतुक’
  • “प्रज्ञा नवनवोन्मेषशालिनी प्रतिभा मता।”
    • इन्होंने प्रतिभा को काव्य हेतु माना है।

आचार्य वामन-

  • समय- 8वीं शताब्दी का उतरार्द्ध, कश्मीर के निवासी थे
  • रचना- ‘काव्यालंकार सूत्रवृति’
    • इसमें 5 अध्याय है, जिन्हें परिच्छेद और 319 सूत्र है।
  • इन्होने ‘काव्य हेतु’ के लिए ‘काव्यांग’ शब्द का प्रयोग किया है।
  • “लोको विद्या प्रकीर्णंच काव्यांगानि।” (काव्यालंकारसूत्रवृत्ति, 1/3/1)
    • ‘लोक व्यवहार’ ‘विद्या’ और ‘प्रकीर्ण’ को काव्य हेतु माना है।
  • प्रतिभा को जन्मजात गुण मानते हुए इसे प्रमुख काव्य हेतु स्वीकार किया गया है-
    • “कवित्व बीजं प्रतिभानं कवित्वस्य बीजम्”।
    • कविता और कविता का बीज प्रतिभा है ‘लोक विद्या प्रकीर्ण’ व ‘प्रतिभा’ को काव्य हेतु माना तथा प्रतिभा को सबसे अधिक महत्व दिया है।

वाग्भट्ट (प्रथम)-

  • मूलनाम- वाहट
  • समय- (1121 ई० से 1256 ई०)
  • रचना- ‘वाग्भटटालंकार’
    • इसमें 5 परिच्छेद है।
  • “प्रतिभा कारणम्तस्य व्युत्पत्तिस्तु विभूषणम्”
    • अर्थात् प्रतिभा काव्य के उत्पति का कारण है तथा व्युत्पति प्रतिभा का आभूषण है।

आचार्य भामह-

  • समय- 6 ठी शताब्दी के पूर्वार्द्ध, कश्मीर के निवासी थे।
  • ये अलंकार संप्रदाय के प्रवर्तक थे।
  • रचना- ‘काव्यालंकार’
    • यह अलंकार शास्त्र का ग्रंथ है। 
    • इसमें 6 अध्याय है जिन्हें परिच्छेद कहा गया है।
  • “गुरूपदेशादध्येतुं शास्त्रं जडधियोऽप्यलम्।
    ​काव्यं तु जायते जातुं कस्यचित् प्रतिभावतः॥” (काव्यालंकार-1-14)
    • गुरु के उपदेश से श्रेष्ठ शास्त्रों का मुर्ख बुद्धि भी अध्ययन कर सकता है काव्य तो कोई प्रतिभाशाली ही बना सकता है।
    • इन्होंने काव्य ‘प्रतिभा’ को काव्य हेतु माना है।

भारतीय आचार्यो के सिद्धांत Question 5:

"काव्यशोभाकरान् धर्मानलंकारान् प्रचक्षते" यह लक्षण अलंकार के संदर्भ में किस आचार्य द्वारा दिया गया है ?

  1. दण्डी
  2. वामन
  3. मम्मट
  4. कुन्तक

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : दण्डी

भारतीय आचार्यो के सिद्धांत Question 5 Detailed Solution

"काव्यशोभाकरान् धर्मानलंकारान् प्रचक्षते"- यह लक्षण अलंकार के संदर्भ में आचार्य दण्डी द्वारा दिया गया है

Key Pointsआचार्य दण्डी -

  • समय- 7 वीं शती
  • इनका प्रसिद्ध ग्रन्थ काव्यादर्श है।
  • संस्कृत भाषा के साहित्यकार थे।
  • इनकी तीन रचनाएँ उपलब्ध है-
    • काव्यदर्श
    • दशकुमार चरित्
    • मृच्छकटिक 

Important Pointsमम्मट-

  • जन्म-11वीं शती
  • मम्मट संस्कृत काव्यशास्त्र के सर्वश्रेष्ठ विद्वानों में जाने जाते हैं।
  • वे अपने शास्त्रग्रंथ काव्यप्रकाश के कारण अधिक प्रसिद्ध हुए।

वामन-

  • समय- 8वीं शती 
  •  ग्रंथ -
    • काव्यालंकार सूत्र आदि। 
  • ये रीति संप्रदाय के प्रवर्तक है। 

कुंतक-

  • समय - 10 वीं शती 
  • ग्रंथ-
    • दशरूपक आदि। 
  • संप्रदाय - वक्रोक्ति 
    • "वक्रोक्ति: काव्यजीवितं।"
    • आचार्य कुंतक ने वक्रोक्ति को काव्य की आत्मा कहा है। 

Additional Informationआचार्य भामह-

  • भारतीय काव्यशास्त्र के महत्तवपूर्ण आचार्य रहे है|
  • इन्हें अलंकार संप्रदाय का जनक कहते हैं।
  • काव्यशास्त्र पर काव्यालंकार नामक ग्रंथ उपलब्ध है।
  • परिभाषा-"शब्दार्थौ सहितौ काव्यम्"|

Top भारतीय आचार्यो के सिद्धांत MCQ Objective Questions

'आलंबनत्व धर्म का साधारणीकरण होता है' पंक्ति किस विद्वान की है?

  1. राममूर्ति त्रिपाठी
  2. रामचन्द्र शुक्ल 
  3. गुलाबराय
  4. विश्वनाथ मिश्र

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : रामचन्द्र शुक्ल 

भारतीय आचार्यो के सिद्धांत Question 6 Detailed Solution

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सही उत्तर है - आलंबनत्व धर्म का साधारणीकरण होता है। 

  • रामचन्द्र शुक्ल ने साधारणीकरण को संदर्भित करते हुए कहा है कि
    • आलंबनत्व धर्म का साधारणीकरण होता है।
    • वे सहृदय के आश्रय से तदात्म्य स्वीकारते हैं और आलंबन का साधारणीकरण। 

Key Pointsअन्य विकल्प -

राममूर्ति त्रिपाठी  
  • जन्म- 4 जनवरी, 1929
  • हिन्दी एवं संस्कृत के विद्वान एवं समालोचक थे।
  • कुछ कृतियाँ -  रस विमर्श, साहित्यशास्त्र के प्रमुख पक्ष, औचित्य विमर्श, भारतीय साहित्य दर्शन। 
गुलाबराय 
  • जन्म- 17 जनवरी
  • भारत के प्रसिद्ध साहित्यकार, निबंधकार और व्यंग्यकार थे।
  • कुछ कृतियाँ - नवरस, कर्तव्य,मेरी असफलताएँ, विज्ञान वार्ता, ठलुआ क्लब। 
विश्वनाथ मिश्र 
  • जन्म- 1906
  • प्रख्यात साहित्यिक संस्था ‘प्रसाद परिषद’ के सभापति रहे थे।
  • कुछ कृतियाँ - हिन्दी साहित्य का अतीत, हिन्दी का सामायिक इतिहास, रसखानी, केशवदास। 

'प्रसन्‍न पद-नव्यार्थ युक्त्युदबोध विधायिनी ।

स्फुन्‍ती सत्कवेबुद्धि∶ प्रतिभा सर्वतोमुखी।।' - उक्त कथन किसका है ?

  1. मम्‍मट
  2. वाग्‍भट
  3. रूद्रट
  4. विश्‍वनाथ

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : वाग्‍भट

भारतीय आचार्यो के सिद्धांत Question 7 Detailed Solution

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  • प्रस्तुत कथन वाग्भट द्वारा दिया गया है।
  • हेतु का तात्पर्य 'कारण' से है।
  • बाबू गुलाबराय के अनुसार - "हेतु का अभिप्राय उन साधनों से है जो कवि की काव्य रचना में सहायक होते हैं। "

Key Points

  •  संस्कृत काव्यशास्त्र में मुख्यतः तीन काव्य - हेतुओं को माना गया - प्रतिभा ( शक्ति ) , व्युत्पत्ति और अभ्यास।
  • मम्मट - शक्ति , निपुणता , अभ्यास।
  • रुद्रट - शक्ति , व्युत्पत्ति , अभ्यास।

रससूत्र की 'अनुमितिवादी' व्याख्या करने वाले आचार्य है:

  1. भट्ट नायक
  2. अभिनव गुप्त
  3. लोलट्ट 
  4. शंकुक

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : शंकुक

भारतीय आचार्यो के सिद्धांत Question 8 Detailed Solution

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रससूत्र की 'अनुमितिवादी' व्याख्या करने वाले आचार्य शंकुक है।  अत: सही विकल्प 4) शंकुक ही होगा।

  • शंकुक भरत के नाट्य शास्त्र के प्रमुख व्याख्याकार है।

 

अन्य काव्यशास्त्र- 

  • भट्ट नायक - भुक्तिवाद
  • अभिनव गुप्त - अभिव्यक्तिवाद
  • लोलट्ट - उत्पत्तिवाद, आरोपवाद 

निम्नलिखित में से किस आचार्य ने 'रीति' का एक भेद' अवन्ती' को माना है?

  1. भामह 
  2. वामन
  3. कुन्तक
  4. भोजराज

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : भोजराज

भारतीय आचार्यो के सिद्धांत Question 9 Detailed Solution

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भोजराज ने अवंती को रीति का एक भेद माना है।

Key Points

आचार्य भोजराज ने ’अवंती’ नामक एक अन्य काव्य-रीति की परिकल्पना प्रस्तुत की है।

भरतमुनि में भी अवंती को रीति का एक भेद माना है।

भोजराज के अनुसार रीति के भेद

  • वैदर्भी, गौङी, पांचाली, लाटी अवंतिका, मागधी
Important Points

वर्तमान में सभी आचार्याे के द्वारा सर्वमान्य रूप में काव्य रीति के मख्यतः निम्न तीन भेद ही स्वीकार किये जाते है।

  • वैदर्भी रीति
  • गौड़ी रीति 
  • पांचाली रीति  
Additional Information

रीति संख्या (आचार्यों के अनुसार)

भरतमुनि :- अवंती दक्षिणात्या, पांचाली, मागधी

भामह :- वैदर्भी, गौङी

दण्डी :- वैदर्भी, गौङी

वामन :- वैदर्भी गौङी, पांचाली

रुद्रट :- वैदर्भी गौङी लाटी, पांचाली

आनंदवर्धन :- असमासा, अल्पसमासा, दीर्घसमासा

राजशेखर :- लच्छोभि (वैदर्भी), मागधी, पांचालिका

कुंतक :-  सुकुमार (वैदर्भी), विचित्र (गौङी), मध्यम (पांचाली)

''शक्ति: कवित्‍वबीज रूप: संस्‍कार विशेष: ''अर्थात् कवित्‍व - निर्माण के बीज - रूप विशिष्‍ट संस्‍कार को शक्ति कहते है।

प्रतिभा के विषय मे उक्‍त उद्धरण किस आचार्य का है ?

  1. आचार्य कुन्‍तक
  2. पंडितराज जगन्नाथ
  3. आचार्य मम्‍मट
  4. आचार्य दण्‍डी

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : आचार्य मम्‍मट

भारतीय आचार्यो के सिद्धांत Question 10 Detailed Solution

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प्रतिभा के विषय मे उक्‍त उद्धरण- 3)आचार्य मम्‍मट का है।

Important Points

  • आचार्य मम्मट अपने शास्त्रग्रंथ काव्य प्रकाश के कारण प्रसिद्ध हुए।
  • इन्होंने काव्य प्रकाश को 10 भागों में बांटा है  
  • जिसको उन्होंने प्रथम उल्लास,द्वितीय उल्लास आदि नाम दिए हैं।

Additional Information

आचार्य 

                              विशेषताएँ

कुंतक

  • अलंकारशास्त्र के एक मौलिक विचारक विद्वान हैं।
  • वक्रोक्तिजीवित में वक्रोक्ति को ही काव्य की आत्मा माना गया है।

जगन्नाथ पण्डितराज

  • उच्च कोटि के कवि, समालोचक, साहित्यशास्त्रकार तथा वैयाकरण हैं।
  • इनकी कृति रसगंगाधर है।

आचार्य मम्‍मट

  • संस्कृत काव्यशास्त्र के सर्वश्रेष्ठ विद्वानों में से एक समझे जाते हैं।
  • अपने शास्त्रग्रंथ काव्य प्रकाश के कारण प्रसिद्ध हुए।

दण्डी

  • संस्कृत भाषा के प्रसिद्ध साहित्यकार हैं।
  • प्रथम रचना काव्यादर्श और दूसरी है दशकुमारचरित

वक्रोक्तिवाद के प्रतिपादक आचार्य हैं

  1. कुंतक
  2. मम्मट
  3. हेमचंद्र
  4. उपर्युक्त में से एक से अधिक
  5. उपर्युक्त में से कोई नहीं

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : कुंतक

भारतीय आचार्यो के सिद्धांत Question 11 Detailed Solution

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सही उत्तर है - कुंतक। 

Key Pointsकुंतक-

  • अलंकारशास्त्र के एक मौलिक विचारक विद्वान थे।
  • ये अभिधावादी आचार्य थे।
  • उनकी एकमात्र रचना वक्रोक्तिजीवित है जो अधूरी ही उपलब्ध हैं।
  • वक्रोक्ति को वे काव्य का 'जीवित' (जीवन, प्राण) मानते हैं। 
  • वक्रोक्तिरेव वैदग्ध्यभंगीभणितिरुच्यते।

 

Additional Information 

सिद्धांत

आचार्य

वक्रोक्ति सिद्धांत

कुंतक

रीति सिद्धांत

वामन

औचित्य सिद्धांत

क्षेमेंद्र

ध्वनि सिद्धांत

आनंदवर्धन

साधारणीकरण के विषय में कौन-से कथन सही हैं?

(a) साधारणीकरण रसास्वाद  बाद की प्रक्रिया है।

(b) साधारणीकरण आलम्बनत्व धर्म का होता है।

(c) साधारणीकरण के लिए भोजकत्व व्यापार अनिवार्य है।

(d) साधारणीकरण के बिना भी रसानुभूति संभव है 

  1. (a) और (b) सही
  2. (a) और (c) सही
  3. (b) और (c) सही
  4. (c) और (d) सही

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : (b) और (c) सही

भारतीय आचार्यो के सिद्धांत Question 12 Detailed Solution

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साधारणीकरण के विषय में-3) (b) और (c) कथन सही हैं। 

(b) साधारणीकरण आलम्बनत्व धर्म का होता है।  

(c) साधारणीकरण के लिए भोजकत्व व्यापार अनिवार्य है। 

Key Points

  • आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार-साधारणीकरण आलम्बनत्व धर्म का होता है। 
  • भट्ट नायक के अनुसार-साधारणीकरण के लिए भोजकत्व व्यापार अनिवार्य है। 

Important Points

  • रस-निष्पति के प्रसंग में 'साधारणीकरण' शब्द अपना विशेष महत्व रखता है।
  • साधारणीकृत का अर्थ है-किसी वस्तु विशेष को सार्वजनीन वस्तु बनाना।
  • रस सिद्धांत में साधारणीकरण के बिना रसानुभूति नहीं हो सकती   

निम्न में से कौन किसके लिए प्रसिद्ध नहीं है?

  1. उपमा के लिए कालिदास
  2. करूणा के लिए भवभूति
  3. अलंकार के लिए भामह
  4. वक्रोक्ति के लिए क्षेमेन्द्र

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : वक्रोक्ति के लिए क्षेमेन्द्र

भारतीय आचार्यो के सिद्धांत Question 13 Detailed Solution

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"क्षेमेंद्र" वक्रोक्ति के लिए प्रसिद्ध नहीं है। अतः उपर्युक्त विकल्पों में से विकल्प (4) वक्रोक्ति के लिए क्षेमेंद्र सही है तथा अन्य विकल्प असंगत है।

Key Points

  • क्षेमेन्द्र संस्कृत में परिहासकथा (सटायर) के लिए प्रसिद्ध हैं।
  • क्षेमेन्द्र (जन्म लगभग 1025-1066) संस्कृत के प्रतिभासंपन्न काश्मीरी महाकवि थे।
Important Points

संक्षिप्त विवरण

काव्य

व्यंग्य

नीति काव्य

भक्ति

रामायणमंजरी

औचित्य विचार चर्चा

कलाविलास

नीतिकल्पतरु

अवदानकल्पलता

भारतमंजरी

कविकण्ठाभरण

समयमात्रिका

दर्पदलन

दशावतारचरित

बृहत्कथामंजरी

सुवृत्ततिलक

नर्ममाला

चतुर्वगसंग्रह

 

देशोपदेश

चारुचर्या

सेव्यसेवकोपदेश

लोकप्रकाश

स्तूपवादन

Additional Information

कालिदास

भवभूति

भामह

अभिज्ञान शाकुन्तलम्

महावीरचरितम्

काव्यशास्त्र

विक्रमोर्वशीयम्

उत्तररामचरितम्

मालविकाग्निमित्रम्

मालतीमाधव

निम्‍नलिखित में से किस आचार्य ने रसों की संख्‍या आठ मानी है -

  1. दंडी
  2. धनंजय
  3. रूद्रट
  4. अभिनव गुप्‍त

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : दंडी

भारतीय आचार्यो के सिद्धांत Question 14 Detailed Solution

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आचार्य-1) दंडी ने रसों की संख्‍या आठ मानी है

Important Points 

  • संस्कृत भाषा के प्रसिद्ध साहित्यकार हैं।
  • कुछ विद्वान इन्हें सातवीं शती के उत्तरार्ध या आठवीं शती के प्रारम्भ का मानते हैं तो कुछ विद्वान इनका जन्म 550 और 650 ई० के मध्य मानते हैं।
  • दंडी का 'काव्यादर्श' अधिक प्रौढ़,अधिक व्यापक और अधिक व्यवस्थित है।
  • दण्डी के अनुसार रस की परिभाषा- वाक्यस्य, ग्राम्यता योनिर्माधुर्ये दर्शतो रस:

Additional Information 

  • धनंजय कृत दशरूप और उस पर धनिककृत अवलोक नाट्यालोचन पर सर्वमान्य ग्रंथ है। 
  • रुद्रट ने विभिन्न काव्यदोषों की गुणत्वापत्ति की चर्चा की है। 
  • अभिनव गुप्त के अनुसार रसों की संख्या नौं है

'प्रज्ञा नवनवोन्‍मेषशालिनी प्रतिभा मता' किसकी उक्ति है ?

  1. कुन्‍तक
  2. मम्‍मट
  3. भट्टलोल्‍लट
  4. श्री भट्टतौत

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : श्री भट्टतौत

भारतीय आचार्यो के सिद्धांत Question 15 Detailed Solution

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उपर्युक्त प्रश्न में श्री भट्टतौत सही विकल्प है।

Key Points

  •  " प्रज्ञा नवनवोन्मेष शालिनी प्रतिभा मता।" अर्थात, "प्रतिभा उस प्रज्ञा का नाम है जो नित्य नवीन रासानुकूल विचार उत्पन्न करती है ।"
  • प्रतिभा वह शक्ति है, जो किसी व्यक्ति को काव्य की रचना में समर्थ बनाती है।

  • काव्य हेतु में प्रतिभा को सर्वाधिक महत्व दिया गया है।

  • प्रतिभा के महत्व के बारे में भट्टतौत जी कहते हैं कि-

    " प्रज्ञा नवनवोन्मेष शालिनी प्रतिभा मता।"

Additional Information

आचार्य

सूत्र 

कुन्‍तक

वक्रोक्तिरेव वैदग्ध्यभंगीभणितिरुच्यते।

मम्‍मट

तद्दोषौ शब्दार्थौ सगुणावनलंकृति पुनः क्वापि

भट्टलोल्‍लट

इनके अनुसार अपरिपक्व स्थायी भाव विभावादि का संयोग पाकर जब परिपक्व होता है तभी इसका नाम रस पड़ जाता है। यह रस मुख्य रूप से अनुकार्य (वास्तविक रामादि) में रहता है और गौण रूप से नट में। यधपि भट्ट लोल्लट ने उक्त मन्तव्य में सहदय का उल्लेख नहीं किया, तथापि उन्हें मान्य यह होगा कि सहदय नट-नटी के माध्यम से उसी रस को प्राप्त करता है जिसे वास्तविक रामादि ने प्राप्त किया होगा ।

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