गद्यांश MCQ Quiz in বাংলা - Objective Question with Answer for गद्यांश - বিনামূল্যে ডাউনলোড করুন [PDF]
Last updated on Mar 19, 2025
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गद्यांश Question 1:
Comprehension:
अनुच्छेद पढ़कर, दिए गए सवालों के सही जवाब चुनिए:-
छायावादी हिंदी साहित्य के आधुनिक युग की वह काव्यधारा है जो लगभग 1916 से 1936 (कुछ विद्वानों के अनुसार यह कालखंड प्रथम विश्वयुद्ध के बाद से माना जाता है) तक प्रमुखता से छाई रही। इसमें प्रसाद, निराला, पंत, महादेवी आदि प्रमुख कवि हुए और जयशंकर प्रसाद को इसका प्रवर्तक माना जाता है। छायावाद की प्रमुखता का दर्शन 1916-17 ई. के आस-पास दिखाई देने लगता है और इलाहाबाद का 'सरस्वती' प्रेस 1920 ई. के आस-पास ही इसका मुख्खर पर्याय है। 1920 ई. में जबलपुर की श्री शारदा पत्रिका में हिंदी में छायावाद शीर्षक निबंध भी निकला जो एक सैद्धांतिक प्रकार की प्रस्थापना थी। संस्कृत छायावाद नाम का पहला प्रयोग था। सरस्वती में छायावाद का प्रथम प्रयोग मुकुटधर पांडेय ने किया। छायावाद क्या है प्रश्न का उत्तर देते हुए मुकुटधर पांडेय ने लिखा है कि अंग्रेजी के कुछ पाश्चात्य साहित्य, बंगला भाषा और साहित्य की वर्तमान स्थिति को सुनकर ही जानकारों ने रहने वाले युग को इस शब्द विशेषण के रूप में प्रयोग किया है। छायावाद के लिए मिस्टिकिज्म शब्द के अर्थ से रहस्यवाद शब्द की व्युत्पत्ति गढ़ायी गयी। सुमित्रानंदन पंत, सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला', जयशंकर प्रसाद 'द्विवेदी' के भिन्न भावकों के हिंदी कवि और मैथिली (सरस्वती 6 मई, 1927) से पता चलता है कि भिन्न कवियों और आलोचकों ने अलग छायावाद कहा है। उन्ही में वे रहस्यवाद कहना चाहते थे, लेकिन मुकुटधर पांडेय जैसे अनेक समालोचकों ने देखते थे कि वहाँ अंग्रेजी द्विवेदी के लिए वे अंग्रेजी पद्धति से अधिक न थे।
छायावादी कवियों की मुख्य प्रकृति क्या है?
Answer (Detailed Solution Below)
गद्यांश Question 1 Detailed Solution
छायावादी कवियों की मुख्य प्रकृति है- स्वछंदता
Key Points
- अनुच्छेद के अनुसार -
- छायावादी कवियों की रचनाओं में स्वछंदता (स्वतंत्रता और आत्म-चेतना) एक मुख्य प्रकृति है।
- वे व्यक्तिगत अनुभूतियों और संवेदनाओं को स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने पर जोर देते हैं।
- स्वछंदता के तहत व्यक्तिगत आत्मा के आंतरिक संघर्ष, अनुभव, भावनाएं और आध्यात्मिक तत्वों को गहनता से अभिव्यक्त किया गया है।
- छायावादी कवियों ने पारंपरिक बंधनों से मुक्त होकर अपनी संवेदनाओं और विचारों को सशक्त रूप में प्रस्तुत किया।
Additional Informationअन्य विकल्प -
- उद्दाम भावना: तीव्र और उग्र भावनाओं का प्रस्तुतीकरण।
- सौंदर्योपासना: सौंदर्य के प्रति विशेष आकर्षण और उपासना।
- आध्यात्मिकता: आध्यात्मिक तत्वों और आध्यात्मिक अनुभूतियों का प्रस्तुतीकरण।
गद्यांश Question 2:
Comprehension:
रवीन्द्रनाथ उच्चकोटि के कवि थे। उनके द्वारा प्रतिपादित मान्यताओं एवं विचारों को भारत में ही सराहा नहीं गया वरन् विश्व में भी उनके विचार लोकप्रिय हैं। एक महान कवि होने के साथ-साथ वे भारतीय सांस्कृतिक परम्परा के अनुयायी के रूप में भी जाने जाते हैं। रवीन्द्रनाथ सांस्कृतिक स्वरूप के रूप में पूर्व और पश्चिम के समन्वय पर बल देते हैं, परंतु पश्चिमी विज्ञान को स्वीकार करते हुए भी उन्होंने उसके भौतिक प्रगतिशीलता हेतु आदर्श को नहीं अपनाया है। वे समन्वय साधना का उत्कृष्टतम रूप भारतवर्ष की राष्ट्रीयता में देखते हैं। यह राष्ट्रीयता काल-प्रवाह में बहकर आई असंख्य जातियों-प्रजातियों के हार्दिक आदान-प्रदान, सहयोग और समन्वय के रूप में प्रतिफलित है। उनकी राष्ट्रीयता की कल्पना पश्चिम की शोषणशील, एकांगी राष्ट्र-चेतना से भिन्न है, जो उपनिवेशों का निर्माण कर राष्ट्रीय जीवन-मान की अभिवृद्धि को ही एकमात्र सत्य जानती है। वस्तुतः भारतवर्ष की राष्ट्रीयता मानवीयता ही है और इसलिए अंतरराष्ट्रीय चेतना से उसका किंचित मात्र भी विरोध नहीं है। भारत का राष्ट्रधर्म मानवता की पुकार बनकर ही अपने आत्मधर्म को चरितार्थ कर सकता है।
भारतीय राष्ट्रीयता, अंतर्राष्ट्रीय चेतना की अविरोधी है क्योंकि वह –
Answer (Detailed Solution Below)
गद्यांश Question 2 Detailed Solution
भारतीय राष्ट्रीयता, अंतर्राष्ट्रीय चेतना की अविरोधी है क्योंकि वह मानवीयता की समानार्थी है।
Key Points
- अनुच्छेद के अनुसार -
- जो उपनिवेशों का निर्माण कर राष्ट्रीय जीवन-मान की अभिवृद्धि को ही एकमात्र सत्य जानती है।
- वस्तुतः भारतवर्ष की राष्ट्रीयता मानवीयता ही है और इसलिए अंतरराष्ट्रीय चेतना से उसका किंचित मात्र भी विरोध नहीं है।
- भारत का राष्ट्रधर्म मानवता की पुकार बनकर ही अपने आत्मधर्म को चरितार्थ कर सकता है।
Additional Information
अन्य विकल्प -
- सहयोग और सौहार्द पर आधारित है
- यह विकल्प बताता है कि भारतीय राष्ट्रीयता का आधार सहयोग और पारस्परिक सौहार्द है।
- यह सही हो सकता है, लेकिन मुख्य कारण नहीं है क्यों भारतीय राष्ट्रीयता अंतर्राष्ट्रीय चेतना की अविरोधी है।
- पश्चिमी विज्ञान को स्वीकार देती है
- यह विकल्प बताता है कि भारतीय राष्ट्रीयता पश्चिमी विज्ञान को स्वीकार करती है।
- यह सत्य हो सकता है, लेकिन यह मुख्य कारण नहीं है जो अनुच्छेद में बताया गया है।
- सांस्कृतिक तत्वों पर बल देती है
- यह विकल्प बताता है कि भारतीय राष्ट्रीयता सांस्कृतिक तत्वों पर जोर देती है। हालांकि भारतीय संस्कृति महत्वपूर्ण है,
- लेकिन अनुच्छेद में भारतीय राष्ट्रीयता को अंतर्राष्ट्रीय चेतना की अविरोधी मानवीयता के आधार पर बताया गया है।
गद्यांश Question 3:
Comprehension:
रवीन्द्रनाथ उच्चकोटि के कवि थे। उनके द्वारा प्रतिपादित मान्यताओं एवं विचारों को भारत में ही सराहा नहीं गया वरन् विश्व में भी उनके विचार लोकप्रिय हैं। एक महान कवि होने के साथ-साथ वे भारतीय सांस्कृतिक परम्परा के अनुयायी के रूप में भी जाने जाते हैं। रवीन्द्रनाथ सांस्कृतिक स्वरूप के रूप में पूर्व और पश्चिम के समन्वय पर बल देते हैं, परंतु पश्चिमी विज्ञान को स्वीकार करते हुए भी उन्होंने उसके भौतिक प्रगतिशीलता हेतु आदर्श को नहीं अपनाया है। वे समन्वय साधना का उत्कृष्टतम रूप भारतवर्ष की राष्ट्रीयता में देखते हैं। यह राष्ट्रीयता काल-प्रवाह में बहकर आई असंख्य जातियों-प्रजातियों के हार्दिक आदान-प्रदान, सहयोग और समन्वय के रूप में प्रतिफलित है। उनकी राष्ट्रीयता की कल्पना पश्चिम की शोषणशील, एकांगी राष्ट्र-चेतना से भिन्न है, जो उपनिवेशों का निर्माण कर राष्ट्रीय जीवन-मान की अभिवृद्धि को ही एकमात्र सत्य जानती है। वस्तुतः भारतवर्ष की राष्ट्रीयता मानवीयता ही है और इसलिए अंतरराष्ट्रीय चेतना से उसका किंचित मात्र भी विरोध नहीं है। भारत का राष्ट्रधर्म मानवता की पुकार बनकर ही अपने आत्मधर्म को चरितार्थ कर सकता है।
पश्चिमी राष्ट्रचेतना को इसलिए एकांगी कहा गया है क्योंकि वह –
Answer (Detailed Solution Below)
गद्यांश Question 3 Detailed Solution
पश्चिमी राष्ट्रचेतना को इसलिए एकांगी कहा गया है क्योंकि वह राष्ट्रीय जीवन-मान की वृद्धि पर बल देती है।
Key Points
- अनुच्छेद के अनुसार -
- उनकी राष्ट्रीयता की कल्पना पश्चिम की शोषणशील, एकांगी राष्ट्र-चेतना से भिन्न है,
- जो उपनिवेशों का निर्माण कर राष्ट्रीय जीवन-मान की अभिवृद्धि को ही एकमात्र सत्य जानती है।
- वस्तुतः भारतवर्ष की राष्ट्रीयता मानवीयता ही है और इसलिए अंतरराष्ट्रीय चेतना से उसका किंचित मात्र भी विरोध नहीं है।
Additional Information अन्य विकल्प -
- उपनिवेशवाद को बढ़ावा देती है
- यह सत्य है कि पश्चिमी राष्ट्र उपनिवेशवाद को बढ़ावा देते हैं,
- लेकिन अनुच्छेद के अनुसार, यह इसके लिए मानसिकता है कि राष्ट्रीय जीवन-मान की वृद्धि महत्वपूर्ण है।
- शोषण में विश्वास रखती है
- यह भी सत्य हो सकता है, लेकिन यह मुख्य कारण नहीं है जो अनुच्छेद में बताया गया है।
- पारस्परिक आदान-प्रदान को महत्व देती है
- यह विकल्प संदर्भ से मेल नहीं खाता।
गद्यांश Question 4:
Comprehension:
रवीन्द्रनाथ उच्चकोटि के कवि थे। उनके द्वारा प्रतिपादित मान्यताओं एवं विचारों को भारत में ही सराहा नहीं गया वरन् विश्व में भी उनके विचार लोकप्रिय हैं। एक महान कवि होने के साथ-साथ वे भारतीय सांस्कृतिक परम्परा के अनुयायी के रूप में भी जाने जाते हैं। रवीन्द्रनाथ सांस्कृतिक स्वरूप के रूप में पूर्व और पश्चिम के समन्वय पर बल देते हैं, परंतु पश्चिमी विज्ञान को स्वीकार करते हुए भी उन्होंने उसके भौतिक प्रगतिशीलता हेतु आदर्श को नहीं अपनाया है। वे समन्वय साधना का उत्कृष्टतम रूप भारतवर्ष की राष्ट्रीयता में देखते हैं। यह राष्ट्रीयता काल-प्रवाह में बहकर आई असंख्य जातियों-प्रजातियों के हार्दिक आदान-प्रदान, सहयोग और समन्वय के रूप में प्रतिफलित है। उनकी राष्ट्रीयता की कल्पना पश्चिम की शोषणशील, एकांगी राष्ट्र-चेतना से भिन्न है, जो उपनिवेशों का निर्माण कर राष्ट्रीय जीवन-मान की अभिवृद्धि को ही एकमात्र सत्य जानती है। वस्तुतः भारतवर्ष की राष्ट्रीयता मानवीयता ही है और इसलिए अंतरराष्ट्रीय चेतना से उसका किंचित मात्र भी विरोध नहीं है। भारत का राष्ट्रधर्म मानवता की पुकार बनकर ही अपने आत्मधर्म को चरितार्थ कर सकता है।
‘भारतीय राष्ट्रीयता’ को पर्याय कहा जा सकता है –
Answer (Detailed Solution Below)
गद्यांश Question 4 Detailed Solution
‘भारतीय राष्ट्रीयता’ को पर्याय कहा जा सकता है – मानवीयता का
Key Points
- अनुच्छेद के अनुसार -
- जो उपनिवेशों का निर्माण कर राष्ट्रीय जीवन-मान की अभिवृद्धि को ही एकमात्र सत्य जानती है।
- वस्तुतः भारतवर्ष की राष्ट्रीयता मानवीयता ही है और इसलिए अंतरराष्ट्रीय चेतना से उसका किंचित मात्र भी विरोध नहीं है।
Additional Informationअन्य विकल्प -
- भौतिकतावाद: यह केवल भौतिक संपत्ति और संसाधनों की अभिवृद्धि पर जोर देता है।
- अध्यात्मवाद: यह आत्मा और आध्यात्मिकता को केंद्र में रखता है, जबकि यहां उल्लेख मानवीयता का है।
- प्रगतिशीलता: यह सुधार और विकास पर ध्यान केंद्रित करता है, लेकिन यह पर्याय भारतीय राष्ट्रीयता के मुकाबले कम उपयुक्त है।