वर्ष 2016 में, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (MWCD) ने राष्ट्रीय महिला नीति का मसौदा तैयार किया। इस नीति का उद्देश्य भारत में महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए एक दृष्टिकोण तैयार करना था। यह महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए पिछली राष्ट्रीय नीति (NPEW) का एक अद्यतन था जिसे लगभग पंद्रह साल पहले 2001 में लागू किया गया था।
यह गहन लेख राष्ट्रीय महिला नीति के बारे में जानकारी प्रदान करेगा, विशेष रूप से आईएएस परीक्षा की तैयारी करने वालों के लिए।
महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए राष्ट्रीय नीति भारत सरकार द्वारा तैयार की गई एक व्यापक रूपरेखा है। इसका उद्देश्य देश में महिलाओं की चुनौतियों का समाधान करना और उनके कल्याण को बढ़ावा देना है। इसका उद्देश्य लैंगिक समानता सुनिश्चित करना, भेदभाव को खत्म करना और समाज के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं को सशक्त बनाना है।
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महिलाओं के आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक सशक्तिकरण को बढ़ावा देना इस नीति का सबसे प्रमुख उद्देश्य है। इसके साथ ही महिलाओं के विरुद्ध सभी प्रकार की हिंसा और भेदभाव को समाप्त करना भी इसका प्रमुख लक्ष्य है। महिलाओं के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और रोजगार के अवसरों तक समान पहुंच सुनिश्चित करना और निर्णय लेने की प्रक्रिया में महिलाओं की भागीदारी और नेतृत्व को बढ़ाना भी इसका उद्देश्य है। इसके अन्य लक्ष्यों में शामिल है-
कुछ क्षेत्रों में प्रगति के बावजूद, मानव विकास मापदंडों, कानूनी अधिकारों, हिंसा से मुक्ति और सामाजिक एवं आर्थिक भेदभाव के संबंध में महिलाओं की वर्तमान स्थिति से पता चलता है कि अभी भी बहुत काम किया जाना बाकी है। जैसे कि विश्व आर्थिक मंच की वार्षिक ग्लोइबल जेंडर गैप रिपोर्ट, 2023 के अनुसार, लिंग समानता के मामले में भारत 146 देशों में से 127वें स्थान पर है हालाँकि इसके रैंकिंग में लगातार सुधार हुआ है लेकिन अभी भी भारत काफी पीछे है। इसमें कहा गया है कि देश ने शिक्षा के सभी स्तरों पर नामांकन में समानता हासिल कर ली है। रिपोर्ट के अनुसार भारत ने कुल लिंग अंतर का 64.3 प्रतिशत कम कर दिया है। हालाँकि, भारत आर्थिक भागीदारी और अवसर पर केवल 36.7 प्रतिशत समानता तक पहुँच पाया है। इसके अलावा हाल ही में भारत सरकार द्वारा प्रस्तुत नारी शक्ति वंदन अधिनियम से भी यह ज्ञात होता है कि भारत में महिलाएं समानता के स्तर तक नहीं पहुँच सकी है तभी राजनीतिक स्तर पर उनके समानता सुनिश्चित करने के लिए ऐसे विधेयक लाने पड़े हैं। इसे देखते हुए ही एक ऐसा वातावरण बनाने के लिए अधिकार-आधारित दृष्टिकोण को सुदृढ़ करना महत्वपूर्ण है जहां महिलाएं अपने अधिकारों का पूर्ण आनंद ले सकें।
देखा जाये तो आजादी के 75 वर्भाष बाद भी भारतीय महिलाएं समानता से कोसों दूर हैं। आज भी भारतीय महिलाओं को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इसमें लिंग आधारित हिंसा, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा तक असमान पहुंच और सीमित आर्थिक अवसर शामिल हैं। इन मुद्दों को संबोधित करने और लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए एक राष्ट्रीय नीति की आवश्यकता है। इसके अलावा महिलाओं के लिए राष्ट्रीय नीति की आवश्यकता को निम्नलिखित बिन्दुओं में दर्शाया जा सकता है-
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राष्ट्रीय महिला नीति, 2016 एक मार्गदर्शक नीति ढांचे के रूप में कार्य करती है जो विभिन्न क्षेत्रों को अधिक विस्तृत, क्षेत्र-विशिष्ट नीति दस्तावेज विकसित करने का निर्देश देती है। इस नीति का उद्देश्य एक ऐसे समाज का निर्माण करना है जहां महिलाएं अपनी पूर्ण क्षमता तक पहुंच सकें और जीवन के सभी पहलुओं में समान भागीदार के रूप में भाग ले सकें, जिससे सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया प्रभावित हो सके। इसके अलावा, मिशन का उद्देश्य एक प्रभावी ढांचा स्थापित करना है जो परिवार, समुदाय, कार्यस्थल और शासन में महिलाओं के लिए समान अधिकार और अवसर सुनिश्चित करने वाली नीतियों, कार्यक्रमों और प्रथाओं के विकास का मार्गदर्शन करेगा।
मसौदा नीति में महिलाओं की विविध आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कई प्राथमिकता वाले क्षेत्रों की पहचान की गई है। जैसे कि खाद्य सुरक्षा और पोषण सहित स्वास्थ्य, शिक्षा, अर्थव्यवस्था (गरीबी, दृश्यता बढ़ाना, कृषि, उद्योग, श्रम और रोजगार (कौशल विकास, उद्यमिता), सेवा क्षेत्र, विज्ञान और प्रौद्योगिकी शामिल हैं), शासन और निर्णय लेना, महिला के विरुद्ध क्रूरता, सक्षम वातावरण (आवास और आश्रय, पेयजल और स्वच्छता, मीडिया, खेल, सामाजिक सुरक्षा, बुनियादी ढांचा शामिल हैं), पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन आदि।
नीतिगत ढांचे को कार्यान्वयन में लाने के लिए राष्ट्रीय, राज्य और स्थानीय सरकार के स्तर पर, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, निगमों, व्यवसायों, ट्रेड यूनियनों, गैर सरकारी संगठनों और समुदाय आधारित संगठनों में विशिष्ट, प्राप्त करने योग्य और प्रभावी रणनीतियों को विकसित करने की आवश्यकता होगी। इसके अलावा महिलाओं के अधिकारों को सुनिश्चित करने और लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए, राष्ट्रीय, राज्य और स्थानीय स्तर पर एक अंतःविषयक और बहु-क्षेत्रीय लैंगिक संस्थागत संरचना को मजबूत और सुव्यवस्थित किया जाएगा। राष्ट्रीय स्तर पर, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय लैंगिक समानता और सामाजिक न्याय के लिए संवैधानिक और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को साकार करने की दिशा में काम करने के लिए एक नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करेगा। एक अंतर-मंत्रालयी कार्य योजना विकसित की जाएगी, जिसमें निश्चित लक्ष्य, मील के पत्थर, गतिविधियां और समयसीमा (अल्पकालिक, मध्यम अवधि और दीर्घकालिक) के साथ-साथ इन कार्यों को लागू करने के लिए जिम्मेदार मंत्रालयों/विभागों की रूपरेखा तैयार की जाएगी। कार्य योजना के अंतर्गत प्रगति और उपलब्धियों की समय-समय पर निगरानी के लिए एक अंतर-मंत्रालयी समिति की स्थापना की जाएगी।
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