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1857 Ki Kranti - 1857 की क्रांति के कारण, क्षेत्रीय नेता और प्रभाव
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Modern History UPSC Notes
1857 की क्रांति (1857 ki kranti), जिसे भारतीय स्वतंत्रता का प्रथम संग्राम भी कहा जाता है, भारत में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध एक बड़ा विद्रोह था। इसकी शुरुआत 10 मई, 1857 को मेरठ में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना के भारतीय सिपाहियों के विद्रोह के रूप में हुई थी। यह विद्रोह शीघ्र ही दिल्ली, कानपुर, लखनऊ, झाँसी और ग्वालियर जैसे प्रमुख क्षेत्रों में फैल गया। यह राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक-धार्मिक और सैन्य शिकायतों से प्रेरित था, और हिंदू और मुस्लिम दोनों सैनिकों द्वारा चर्बी लगे कारतूसों के इस्तेमाल से भड़क उठा था। हालाँकि अंततः अंग्रेजों द्वारा इसे दबा दिया गया, लेकिन इस विद्रोह ने भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ ला दिया, जिसने कंपनी शासन का अंत कर दिया और भारत को सीधे ब्रिटिश राज के अधीन कर दिया।
1857 की क्रांति UPSC IAS परीक्षा के लिए सबसे महत्वपूर्ण विषयों में से एक है। यह मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन पेपर-1 और UPSC प्रारंभिक परीक्षा के सामान्य अध्ययन पेपर-1 में आधुनिक इतिहास विषय के एक महत्वपूर्ण भाग को कवर करता है।
1857 का विद्रोह (1857 ka vidroh) यूपीएससी पर इस लेख में, आइए हम 1857 के विद्रोह के विभिन्न कारणों, 1857 की क्रांति (1857 ki kranti) के प्रमुख नेताओं, 1857 के विद्रोह की प्रकृति, इसके दमन और इसके महत्व पर विस्तार से चर्चा करें।
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1857 की क्रांति | 1857 ki kranti
1857 की क्रांति (1857 ki kranti in hindi) को 1857 का विद्रोह (1857 ka vidroh) भी कहा जाता है। यह 1857-58 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के विरुद्ध भारत में हुआ एक बड़ा विद्रोह था। यह विद्रोह 10 मई 1857 को कंपनी की सेना के सिपाहियों के विद्रोह के रूप में मेरठ के गढ़ नगर में शुरू हुआ था। इसके बाद यह अन्य विद्रोहों और नागरिक विद्रोहों में बदल गया, मुख्यतः ऊपरी गंगा के मैदान और मध्य भारत में।
1857 का विद्रोह |
|
पहलू |
विवरण |
1857 का विद्रोह |
ब्रिटिश शासन के विरुद्ध पहला बड़ा विद्रोह, जिसे प्रथम स्वतंत्रता संग्राम भी कहा जाता है। |
विद्रोह की प्रकृति |
एक सिपाही विद्रोह के रूप में शुरू हुआ यह विद्रोह उत्तर-मध्य भारत में एक नागरिक विद्रोह के रूप में विकसित हुआ। |
कारण |
राजनीतिक विलय, आर्थिक संकट, सामाजिक-धार्मिक हस्तक्षेप, सैन्य भेदभाव। |
तत्कालिक कारण |
कथित तौर पर गाय/सुअर की चर्बी से बने एनफील्ड राइफल कारतूसों का प्रयोग। |
प्रमुख केंद्र |
मेरठ, दिल्ली, कानपुर, लखनऊ, झाँसी, ग्वालियर। |
प्रमुख नेता |
बहादुर शाह जफर, नाना साहब, रानी लक्ष्मीबाई, बेगम हजरत महल, मंगल पांडे। |
ब्रिटिश प्रतिक्रिया |
विद्रोह को सुदृढ़ीकरण के साथ दबा दिया गया; शासन का पुनर्गठन हुआ। |
परिणाम |
ईस्ट इंडिया कंपनी का अंत; भारत को प्रत्यक्ष ब्रिटिश क्राउन शासन के अधीन लाया गया (1858)। |
महत्व |
भावी राष्ट्रवादी आंदोलनों की नींव; प्रारंभिक भारतीय प्रतिरोध का प्रतीक। |
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1857 की क्रांति के कारण | 1857 Ki Kranti Ke Karan
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की विस्तारवादी और साम्राज्यवादी नीतियों का समाज के सभी वर्गों, जिनमें शासक, किसान और व्यापारी शामिल थे, पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा। 1857 की क्रांति (1857 ki kranti) केवल एक नीति या घटना से प्रेरित नहीं था; बल्कि यह राजनीतिक, आर्थिक, प्रशासनिक और सामाजिक-धार्मिक कारकों के संयोजन से उत्पन्न हुआ था। इन कारणों की संक्षेप में नीचे चर्चा की गई है:
1857 के विद्रोह के राजनीतिक एवं आर्थिक कारण लेख यहां पढ़ें।
1857 के विद्रोह के राजनीतिक कारण
- ब्रिटिश विस्तार के दौरान हड़प नीति के तहत झांसी, सतारा और नागपुर जैसी कई रियासतों को अपने में मिला लिया गया।
- अवध के विलय (1856) से कुलीन वर्ग और आम जनता दोनों नाराज हो गये।
- अंग्रेजों ने मुगल वंश के प्रति अनादर प्रदर्शित करते हुए बहादुर शाह जफर के बाद मुगल उपाधि के अंत की घोषणा कर दी।
- भारतीय शासकों और कुलीनों का ब्रिटिश वादों और शासन पर से भरोसा उठ गया।
1857 के विद्रोह के आर्थिक कारण
- उच्च भूमि राजस्व नीतियों के कारण किसानों पर बोझ पड़ा और उनकी भूमि नष्ट हो गई।
- ब्रिटिश फैक्ट्री-निर्मित वस्तुओं से प्रतिस्पर्धा के कारण पारंपरिक कारीगरों और बुनकरों को नुकसान उठाना पड़ा।
- भारतीय उद्योगों में गिरावट आई; कई लोगों ने अपनी आजीविका खो दी ( विऔद्योगीकरण )।
- सिपाहियों को कम वेतन मिलता था और उन्हें आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था।
- किसान और ज़मींदार ब्रिटिश आर्थिक शोषण से समान रूप से व्यथित थे।
1857 के विद्रोह के सामाजिक-धार्मिक कारण
- सती प्रथा उन्मूलन और विधवा पुनर्विवाह अधिनियम जैसे ब्रिटिश सुधारों को भारतीय रीति-रिवाजों में हस्तक्षेप के रूप में देखा गया।
- ईसाई मिशनरी गतिविधियों से धर्म परिवर्तन का डर बढ़ गया।
- सामाजिक कानूनों ने जाति व्यवस्था और धार्मिक प्रथाओं को ख़तरा पैदा कर दिया।
- हिंदू और मुसलमान दोनों को ब्रिटिश शासन के तहत अपनी पहचान खोने का डर था।
1857 के विद्रोह के सैन्य कारण
- भारतीय सिपाहियों और ब्रिटिश सैनिकों के बीच पदोन्नति और वेतन में भेदभाव ।
- उच्च पद केवल यूरोपीय लोगों के लिए आरक्षित थे।
- सिपाहियों को विदेशों में तैनात करना धार्मिक मान्यताओं के विरुद्ध था (जाति का ह्रास)।
- गाय और सूअर की चर्बी से बने कारतूसों के मुद्दे ने हिंदू और मुस्लिम दोनों की भावनाओं को ठेस पहुंचाई।
- सिपाहियों को अंग्रेजों द्वारा अपमानित और धोखा दिया गया महसूस हुआ।
1857 के विद्रोह के तात्कालिक कारण
- 1857 में, भारतीय सिपाहियों को एनफील्ड राइफलें जारी की गईं कारतूसों पर कथित रूप से गाय और सूअर की चर्बी लगी हुई थी।
- कारतूसों का उपयोग करने से इनकार करने पर मेरठ में 85 सिपाहियों का कोर्ट मार्शल किया गया।
- 10 मई 1857 को मेरठ में विद्रोह शुरू हुआ जो जल्द ही उत्तर भारत के अन्य भागों में फैल गया।
1857 के विद्रोह के सामाजिक कारणों के बारे में अधिक जानें!
1857 के विद्रोह का विषय
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ भारतीय सिपाहियों में पनपता असंतोष उन चर्बी लगे कारतूसों के इस्तेमाल के आदेश से और भड़क गया। सिपाहियों ने चर्बी लगे कारतूसों का इस्तेमाल करने से इनकार कर दिया। ब्रिटिश अधिकारियों ने इसे अवज्ञा माना और सिपाहियों पर कठोर दंड थोपना शुरू कर दिया। इस प्रकार 1857 की क्रांति (1857 ki kranti in hindi) की शुरुआत हुई।
आइये 1857 के विद्रोह (1857 ka vidroh) की प्रगति पर संक्षेप में चर्चा करें।
1857 के विद्रोह का विषय |
|
तारीख |
घटनाएँ |
2 फरवरी 1857 |
बरहामपुर स्थित 19वीं नेटिव इन्फैंट्री, जिसने एनफील्ड राइफल इस्तेमाल करने से इनकार कर दिया था, विद्रोह पर उतर आई। जल्द ही, उन्हें भंग कर दिया गया। |
8 अप्रैल 1857 |
34वीं नेटिव इन्फैंट्री के सिपाही मंगल पांडे को सार्जेंट मेजर पर गोली चलाने के कारण फांसी दे दी गई और 34वीं नेटिव इन्फैंट्री को भंग कर दिया गया। |
10 मई 1857 |
विद्रोह मेरठ में शुरू हुआ। |
11 से 30 मई 1857 |
बहादुर शाह जफर को भारत का सम्राट घोषित किया गया। धीरे-धीरे दिल्ली, बम्बई, अलीगढ, फिरोजपुर, बुलन्दशहर, इटावा, मोरादाबाद, बरेली, शाहजहाँपुर तथा उत्तर प्रदेश के अन्य स्थानों पर विद्रोह भड़क उठा। |
जून 1857 |
ग्वालियर, झांसी, इलाहाबाद, फैजाबाद, लखनऊ, भरतपुर आदि स्थानों पर प्रकोप। |
जुलाई और अगस्त 1857 |
इंदौर, महू, नर्बुदा जिलों और पंजाब में कुछ स्थानों पर विद्रोह हुए। |
सितंबर 1857 |
दिल्ली पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने पुनः कब्ज़ा कर लिया। |
नवंबर 1857 |
जनरल विन्धम को कानपुर के बाहर विद्रोहियों ने पराजित कर दिया। |
दिसंबर 1857 |
कानपुर का युद्ध सर कॉलिन कैम्पबेल ने जीता था। |
मार्च 1857 |
लखनऊ पर अंग्रेजों ने पुनः कब्ज़ा कर लिया। |
अप्रैल 1857 |
रानी लक्ष्मीबाई के विरुद्ध युद्ध करके अंग्रेजों ने झांसी पर कब्जा कर लिया था। |
मई 1857 |
बरेली, कालपी और जगदीशपुर पर अंग्रेजों ने पुनः कब्जा कर लिया। |
जुलाई से दिसंबर 1857 |
धीरे-धीरे भारत में ब्रिटिश सत्ता पुनः स्थापित हो गयी। |
1857 के विद्रोह के नेता
निम्नलिखित तालिका में 1857 की क्रांति (1857 ki kranti in hindi) के केन्द्रों, उन केन्द्रों पर विद्रोह का नेतृत्व करने वाले नेताओं तथा विद्रोह को दबाने वाले ब्रिटिश जनरलों का विवरण दिया गया है।
1857 के विद्रोह के नेता - क्षेत्रवार |
|
क्षेत्र |
नेता |
दिल्ली |
बहादुर शाह जफर (नाममात्र नेता), जनरल बख्त खान |
कानपुर |
नाना साहिब , तात्या टोपे |
लखनऊ (अवध) |
बेगम हज़रत महल , बिरजिस क़द्र |
झांसी |
रानी लक्ष्मी बाई |
ग्वालियर |
तात्या टोपे , रानी लक्ष्मीबाई |
बरेली |
खान बहादुर खान |
बिहार |
कुंवर सिंह |
फैजाबाद |
मौलवी अहमदुल्लाह शाह |
रोहिलखंड |
खान बहादुर खान |
फर्रुखाबाद |
तांतिया टोपे (संक्षिप्त उपस्थिति) |
आरा |
बाबू अमर सिंह (कुंवर सिंह के भाई) |
1857 के विद्रोह की विफलता के कारण
1857 के विद्रोह की असफलता के कारण नीचे सूचीबद्ध हैं।
- विद्रोही बलों के बीच समन्वय और एकीकृत नेतृत्व का अभाव।
- ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की श्रेष्ठ सैन्य शक्ति और संसाधन।
- विद्रोह में शामिल विभिन्न समूहों में विभाजन, जिसमें क्षेत्रीय, धार्मिक और सामाजिक विभाजन शामिल हैं।
- विद्रोही बलों के बीच अपर्याप्त संचार और सूचना का धीमा प्रसार।
- भारतीय शासकों और कुलीन वर्ग से व्यापक समर्थन का अभाव।
- विद्रोही नेताओं द्वारा की गई रणनीतिक गलतियाँ, जैसे सैन्य अभियानों की खराब योजना और क्रियान्वयन।
- विद्रोही बलों के लिए आधुनिक हथियारों और सैन्य प्रशिक्षण तक सीमित पहुंच।
- विद्रोही समूहों के भीतर आंतरिक संघर्षों और प्रतिद्वंद्विता का फायदा उठाने की ब्रिटिश क्षमता।
- कुछ रियासतों सहित भारतीय समाज के प्रमुख वर्गों को जीतने या बेअसर करने में ब्रिटिशों की सफलता।
- 1857 का विद्रोह (1857 ka vidroh) के दमन के बाद ब्रिटिश नियंत्रण की बहाली और औपनिवेशिक शासन को सुदृढ़ करना।
यूपीएससी के लिए द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध यहां पढ़ें।
1857 के विद्रोह का प्रभाव
1857 के विद्रोह के प्रभावों को नीचे सूचीबद्ध किया गया है।
- ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन का अंत: ईस्ट इंडिया कंपनी ने एक सदी से भी ज़्यादा समय तक भारत पर शासन किया था। 1857 के विद्रोह ने दिखा दिया कि अब वह उपनिवेश पर नियंत्रण बनाए रखने में सक्षम नहीं थी। ब्रिटिश सरकार ने कंपनी को समाप्त करने और भारत पर सीधा नियंत्रण करने का फैसला किया।
- प्रत्यक्ष ब्रिटिश शासन की स्थापना: 1857 का विद्रोह (1857 ka vidroh) के बाद, भारत पर सीधे ब्रिटिश राज का शासन स्थापित हो गया। इसका अर्थ था कि ब्रिटिश सरकार का भारत के प्रशासन पर अधिक नियंत्रण था। वे ईस्ट इंडिया कंपनी से परामर्श किए बिना ही निर्णय ले सकते थे।
- भारतीय सिविल सेवा का गठन: भारतीय सिविल सेवा की स्थापना 1858 में हुई थी। इसका उद्देश्य भारत के प्रशासन के लिए ब्रिटिश अधिकारियों का एक कैडर प्रदान करना था। आईसीएस की भर्ती एक प्रतियोगी परीक्षा के माध्यम से की जाती थी। इन्हें ब्रिटिश कानून और प्रशासन का प्रशिक्षण दिया जाता था।
- भारतीयों में राष्ट्रवाद का उदय: 1857 के विद्रोह ने भारतीयों को यह दिखाया कि वे अंग्रेजों के खिलाफ एकजुट होकर अपनी स्वतंत्रता के लिए लड़ सकते हैं। इससे भारतीयों में राष्ट्रवाद का उदय हुआ। इसके कारण भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस जैसे नए राजनीतिक संगठनों का भी गठन हुआ।
- भारतीय संस्कृति और विरासत में नई रुचि: कई भारतीयों ने अपने अतीत की ओर देखना और अपनी परंपराओं पर गर्व करना शुरू कर दिया। इससे भारतीय कला, साहित्य और संगीत का पुनरुत्थान हुआ।
- सेना का पुनर्गठन: एक और विद्रोह के जोखिम को कम करने के लिए ब्रिटिश सेना का पुनर्गठन किया गया। भारतीय सेना में ब्रिटिश सैनिकों का अनुपात बढ़ा दिया गया। भारतीय सैनिकों को अब एक ही क्षेत्र से समूहों में सेवा करने की अनुमति नहीं थी।
संथाल विद्रोह के बारे में जानने के लिए यह लेख देखें।
1857 की क्रांति (1857 ki kranti), ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की साम्राज्यवादी नीतियों के विरुद्ध लड़ा गया एक उपनिवेश-विरोधी आंदोलन, भारतीय इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है। हालाँकि बाद में इस विद्रोह को दबा दिया गया, लेकिन इसने भारत में ब्रिटिश शासन की नींव हिला दी। 1857 के विद्रोह की समाप्ति के साथ ही, क्षेत्रीय विस्तार का युग भी समाप्त हो गया। हालाँकि, इसने भारत में आर्थिक शोषण के युग का मार्ग प्रशस्त किया।
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1857 का विद्रोह यूपीएससी FAQs
1857 के विद्रोह का तात्कालिक कारण क्या था?
इसका तात्कालिक कारण एनफील्ड राइफल का प्रचलन था, जिसके कारतूसों के बारे में अफवाह थी कि उनमें गाय और सूअर की चर्बी लगी होती थी, जिससे हिंदू और मुस्लिम दोनों की भावनाएं आहत होती थीं।
1857 के विद्रोह के दौरान गवर्नर जनरल कौन था?
1857 के विद्रोह के दौरान लॉर्ड कैनिंग भारत के गवर्नर-जनरल थे। बाद में ब्रिटिश क्राउन द्वारा प्रशासन संभालने के बाद वे भारत के पहले वायसराय बने।
कानपुर में 1857 के विद्रोह का नेतृत्व किसने किया?
नाना साहब ने कानपुर में विद्रोह का नेतृत्व किया। उन्हें विद्रोह के सबसे कुशल सैन्य नेताओं में से एक, तात्या टोपे का समर्थन प्राप्त था।
1857 का विद्रोह किसने शुरू किया?
1857 के विद्रोह की शुरुआत ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना के भारतीय सिपाहियों द्वारा की गई थी, जिसमें मंगल पांडे ने बैरकपुर में पहली गोली चलाई थी, जिससे वह विद्रोह करने वाले सबसे शुरुआती ज्ञात व्यक्तियों में से एक बन गए।
1857 के विद्रोह के मुख्य केंद्र कौन से थे?
1857 के विद्रोह के प्रमुख केंद्र मेरठ, दिल्ली, कानपुर, लखनऊ, झाँसी, ग्वालियर, बरेली, आरा और फैज़ाबाद थे। इन क्षेत्रों में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध भीषण युद्ध और व्यापक विद्रोह हुए।
1857 के विद्रोह के क्या कारण थे?
इसके कारणों में राजनीतिक अधिग्रहण, आर्थिक शोषण, सैन्य शिकायतें, सामाजिक और धार्मिक हस्तक्षेप, तथा हड़प नीति जैसी ब्रिटिश नीतियों के कारण भारतीयों में बढ़ता असंतोष शामिल था।