भक्तिकाल पंक्तियाँ MCQ Quiz in తెలుగు - Objective Question with Answer for भक्तिकाल पंक्तियाँ - ముఫ్త్ [PDF] డౌన్లోడ్ కరెన్
Last updated on Apr 4, 2025
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भक्तिकाल पंक्तियाँ Question 1:
करत-करत अभ्यास के जडमति होत सुजान - यह उक्ति किसकी है?
Answer (Detailed Solution Below)
भक्तिकाल पंक्तियाँ Question 1 Detailed Solution
- करत-करत अभ्यास के जडमति होत सुजान - यह उक्ति वृन्द की है।
- रीतिकालीन परंपरा के अंन्तर्गत वृन्द जी का नाम बड़े आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है।
- इनका पूरा नाम वृन्दावनदास था।
- वृन्द जी को कविताओं के माध्यम से कई बार सम्मानित पुरस्कारों से नवाजा गया।
- इसके चलते वृन्द जी का कविता के विषय में मनोवल बढता गया और वृन्द जी श्रेष्ठ कवि के रूप में पहिचाने जाने लगे।
- ‘वृंद-सतसई कवि वृन्द जी की सबसे प्रसद्धि रचनाओं में से एक है. जिसमें 700 दोहे हैं।
- "आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी" जी ने कबीर दास जी को "भाषा का डिक्टेटर" कहा है।
- कबीरदास की भाषा को पंचमेल खिचड़ी, सधुक्कडी आदि नाम से अभिहित किया जाता है।
- कबीर की वाणी का संग्रह उनके शिष्य धर्मदास ने बीजक नाम से सन 1464 में किया है।
- बीजक के तीन भाग हैं:-
- साखी
- सबद
- रमैनी
Key Points
Important Points
Additional Information
कबीर की रचनाओं में प्रयुक्त छंद एवं भाषा निम्नलिखित हैं:-
रचना |
अर्थ |
प्रयुक्त छंद |
भाषा |
रमैनी |
रामायण |
चौपाई+दोहा |
ब्रजभाषा और पूर्वी बोली |
सबद |
शब्द |
गेय पद |
ब्रजभाषा और पूर्वी बोली |
साखी |
साक्षी |
दोहा |
राजस्थानी, पंजाबी मिली खड़ी बोली |
भक्तिकाल पंक्तियाँ Question 2:
"माई न होती, बाप न होते, कर्म्म न होता काया।
हम नहिं होते, तुम नहिं होते, कौंन कहॉं ते आया।।
चंद न होता, सूर न होता, पानी पवन मिलाया।
शास्त्रत न होता, वेद न होता, करम कहाॅँँ ते आया।। "
उपर्युक्त काव्य पंक्तियॉं किस कवि की हैं?
Answer (Detailed Solution Below)
भक्तिकाल पंक्तियाँ Question 2 Detailed Solution
- सही उत्तर विकल्प 2 है।
- यह पंक्तियां नामदेव की हैं। Key Points
- भक्तिकाल के निर्गुण कवि ( सगुण रचनाएं भी की हैं)
- हिंदी में भक्ति साहित्य की परंपरा का प्रवर्तन नामदेव ने किया।
- संप्रदाय - बारकरी
- भाषा - सगुण भक्ति पदों की भाषा ब्रज है।
- निर्गुण पदों की भाषा खड़ी बोली अथवा सधुक्कड़ी
- इनकी रचनाएं गुरु ग्रंथ साहिब में मिलती हैं।
- महत्वपूर्ण पंक्तियां -
- पांडे तुम्हारी गायत्री लोधे का खेत खाती थी। लैकरी ठेंगा टंगरी तोरी लंगत लंगत लाती थी।
- हिंदू पूजै देहरा, मुसलमान मसीद।मा सेविया जहां देहरा न मसीद।
भक्तिकाल पंक्तियाँ Question 3:
कबीर का हठयोग किस साहित्य से प्रभावित है -
Answer (Detailed Solution Below)
भक्तिकाल पंक्तियाँ Question 3 Detailed Solution
सिद्ध एवं नाथ साहित्य... से कबीर का हठयोग प्रभावित है।
Key Points
- सिद्धों, नाथों ने जिस प्रकार हठयोग साधना पर बल दिया। कबीर द्वारा नाद बिन्दु की साधना षटचक्रभेदन का प्रभाव दिखाई देता है।
- सिद्धों, नाथों ने तीनों नाङियों इङा, पिंगला व सुषुम्ना को ललना, रसना व अवघूतिका नाम दिया,
- जबकि कबीर ने उन्हें गंगा, जमुना और सरस्वती नाम दिया।
Additional Information
- सिद्ध साहित्य
- राहुल सांकृत्यायन ने 84 सिद्धों के नामों का उल्लेख किया है।
- यह सिद्ध अपने नाम के अंत में आदर के रूप मे ‘पा’ शब्द का प्रयोग करते थे
जैसे : सरहपा, लुईपा
- नाथ साहित्य
- भगवान शिव के उपासक नाथों के द्वारा जो साहित्य रचा गया, वही नाथ साहित्य कहलाता है।
- राहुल संकृत्यायन ने नाथपंथ को सिद्धों की परंपरा का ही विकसित रूप माना है।
- हजारी प्रसाद द्विवेदी ने नाथपन्थ या नाथ सम्प्रदाय को 'सिद्ध मत', 'सिद्ध मार्ग', 'योग मार्ग', 'योग संप्रदाय', 'अवधूत मत' एवं 'अवधूत संप्रदाय' के नाम से पुकारा है।
भक्तिकाल पंक्तियाँ Question 4:
चौसरिया के खेल में रे, जुग्ग मिलन की आस।
नर्द अकेली रह गयी रे, नहिं जीवन की आस हो।।"
- कबीर की इस पंक्ति में 'नर्द' शब्द का अर्थ है :
Answer (Detailed Solution Below)
भक्तिकाल पंक्तियाँ Question 4 Detailed Solution
चौसरिया के खेल में रे, जुग्ग मिलन की आस।
नर्द अकेली रह गयी रे, नहिं जीवन की आस हो।।"-
- कबीर की इस पंक्ति में 'नर्द' शब्द का अर्थ है : गोटी
Key Points
पंक्तियों का भावार्थ हैं-
- चौसर के खेल में जब दो गोटियाँ एक जगह इकट्ठी हो जाती है तब उसकी आशा में ही भक्त भीतर-भीतर उतरता जाता है।
- सब कुछ दाँव पर लगता जाता है, बस एक ही आशा रह जाती है कि कोई समय तो आयेगा जब दोनों गोटें एक जगह मिल जायेगे, जहाँ मैं और तू का मिलन होगा।
- अगर गोटी अकेली रह गई तो जीवन व्यर्थ है, फिर जीने की कोई आस नहीं है।
- जीवन में सारी आशा परमात्मा के होने से है।
Important Points
कबीर-
- जन्म-1398-1518 ई.
- गुरु-रामानंद
- ये सिकन्दर लोदी के समकालीन थे।
- भाषा-सधुक्कड़ी
- कबीर की वाणी का संग्रह उनके शिष्य धर्मदास ने बीजक(1464 ई.) नाम से किया था।
- इसके तीन भाग हैं-रमैनी,सबद और साखी।
- हजारीप्रसाद द्विवेदी-
- "भाषा पर कबीर का जबरदस्त अधिकार था। वे वाणी के डिक्टेटर थे।"
Additional Information
सम्पूर्ण पद हैं-
- तन-मन-धन बाजी लागि हो।
चौपड़ खेलूँ पीवसे रे, तन-मन बाजी लगाय।
हारी तो पियकी भी रे, जीती तो पिय मोर हो
चौसरियाके खेल में रे, जुग्ग मिलन की आस।
नर्द अकेली रह गई रे, नहि जीवन की आस हो।
चार बरन घर एक है रे, भाँति भाँतिके लोग।
मनसा-बाचा-कर्मना कोई, प्रीति निबाहो ओर हो।
लख चौरासी भरमत भरमत, पौपै अटकी आय।
जो अबके पौ ना पड़ी रे, फिर चौरासी जाय हो।
कहै कबीर धर्मदास रे, जीती बाजी मत हार।
अबके सुरत चढ़ाय दे रे, सोई सुहागिन नार हो।
भक्तिकाल पंक्तियाँ Question 5:
'तारो अब मोही' पंक्ति में रेखांकित शब्द का अर्थ है?
Answer (Detailed Solution Below)
भक्तिकाल पंक्तियाँ Question 5 Detailed Solution
'तारो अब मोही' पंक्ति में रेखांकित शब्द का अर्थ है- उद्धार करना।
Key Points
- मरे तो गिरिधर गोपाल......................................तारों अब मोही
- प्रस्तुत पद पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित मीराबाई के पदों से लिया गया है।
- इस पद में उन्होंने भगवान कृष्ण को पति के रूप में माना है तथा अपने उद्धार की प्रार्थना की है।
- भावार्थ -
- मीराबाई कहती हैं कि मेरे तो गिरधर गोपाल अर्थात् कृष्ण ही सब कुछ हैं। दूसरे से मेरा कोई संबंध नहीं है।
- जिसके सिर पर मोर का मुकुट है, वही मेरा पति है। उनके लिए मैंने परिवार की मर्यादा भी छोड़ दी है।
- अब मेरा कोई क्या कर सकता है? अर्थात् मुझे किसी की परवाह नहीं है।
- मैं संतों के पास बैठकर ज्ञान प्राप्त करती हूँ और इस प्रकार लोक-लाज भी खो दी है।
- मैंने अपने आँसुओं के जल से सींच-सींचकर प्रेम की बेल बोई है।
- अब यह बेल फैल गई है और इस पर आनंद रूपी फल लगने लगे हैं।
- वे कहती हैं कि मैंने कृष्ण के प्रेम रूप दूध को भक्ति रूपी मथानी में बड़े प्रेम से बिलोया है।
- मैंने दही से सार तत्व अर्थात् घी को निकाल लिया और छाछ रूपी सारहीन अंशों को छोड़ दिया।
- वे प्रभु के भक्त को देखकर बहुत प्रसन्न होती हैं और संसार के लोगों को मोह-माया में लिप्त देखकर रोती हैं।
- वे स्वयं को गिरधर की दासी बताती हैं और अपने उद्धार के लिए प्रार्थना करती हैं।
Additional Informationमीराबाई
- जन्म - 1498 ई०
- मृत्यु- 1546 ई०
- रचनाएँ -
- नरसी जी रो माहेरो
- गीत गोविन्द की टीका
- राग गोविन्द
- सोरठ के पद
- मीराबाई की मलार
- गर्वागीत
- फुटकर पद
भक्तिकाल पंक्तियाँ Question 6:
'प्रभु जी तुम चन्दन हम पानी ।
जाकी अंग-अंग बास समानी ।।'
उपर्युक्त पंक्तियों के रचयिता हैं
Answer (Detailed Solution Below)
भक्तिकाल पंक्तियाँ Question 6 Detailed Solution
‘प्रभु जी तुम चंदन हम पानी’ 'रैदास' का वाक्य है। यह संत रैदास (रविदास) द्वारा रचित 'पद' है। अन्य विकल्प अनुपयुक्त हैं। अतः सही विकल्प 'रैदास' है।
Key Points
अन्य विकल्प:
- दादू दयाल : दादूदयाल (1544-1603 ई.) हिन्दी के भक्तिकाल में ज्ञानाश्रयी शाखा के प्रमुख सन्त कवि थे। इनके 52 पट्टशिष्य थे, जिनमें गरीबदास, सुंदरदास, रज्जब और बखना मुख्य हैं।
- कबीर - संत कबीरदास हिंदी साहित्य के भक्ति काल के इकलौते ऐसे कवि हैं, जो आजीवन समाज और लोगों के बीच व्याप्त आडंबरों पर कुठाराघात करते रहे।
- नानक - सिखों के प्रथम (आदि )गुरु हैं। इनके अनुयायी इन्हें नानक, नानक देव जी, बाबा नानक और नानकशाह नामों से सम्बोधित करते हैं।
- नानक अपने व्यक्तित्व में दार्शनिक, योगी, गृहस्थ, धर्मसुधारक, समाजसुधारक, कवि, देशभक्त और विश्वबन्धु - सभी के गुण समेटे हुए थे।
भक्तिकाल पंक्तियाँ Question 7:
'जेहि पंखी के निअर होइ, कहै बिरह कै बात।
सोई पंखी जाइ जरि, तरिवर होहिं निपात।।'
ऊहात्मकता के अतिरिक्त उक्त पंक्तियों में व्यक्त भाव की क्या विशेषता है?
Answer (Detailed Solution Below)
भक्तिकाल पंक्तियाँ Question 7 Detailed Solution
- सही उत्तर विकल्प 3 होगा।
- इन पंक्तियों में विरहताप के वेदनात्मक स्वरूप की विशद व्यंजना की गई है।
- रचना - पद्मावत
- खंड - नागमती वियोग
- रचयिता - मलिक मोहम्मद जायसी
- अर्थ - मैं अपनी विरह व्यथा किसी पंछी को सुनाती हूं तो वह भस्म हो जाता है। किसी पेड़ से कहती हूं तो उसके पत्ते जल उठते हैं।
- जायसी भक्तिकाव्य के निर्गुण शाखा के प्रेम मार्गी कवि हैं।
- महत्वपूर्ण ग्रंथ -
- पद्मावत - नागमती, पद्मावती, रतनसेन की प्रेम कहानी
- अखरावट - वर्णमाला से संबंधित ग्रंथ
- आखिरी कलाम - कयामत का वर्णन
- कहरानामा
- मसलानामा
- कन्हावत
- पद्मावत में 57 खंड हैं।
- जाय सी के गुरु - सूफी फकीर शेख मोहिदी
Key Points
Important Points
Additional Information
भक्तिकाल पंक्तियाँ Question 8:
'पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ पंडित भया न कोय' काव्य - पंक्ति किस कवि की है?
Answer (Detailed Solution Below)
भक्तिकाल पंक्तियाँ Question 8 Detailed Solution
सही उत्तर है - ‘कबीर’।
- ‘पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ पंडित भया न कोय' काव्य - पंक्ति कबीर की है।
Key Pointsपोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।।
व्याख्या :
- बड़ी बड़ी पुस्तकें पढ़ कर संसार में कितने ही लोग मृत्यु के द्वार पहुँच गए, पर सभी विद्वान न हो सके।
कबीर मानते हैं कि यदि कोई प्रेम या प्यार के केवल ढाई अक्षर ही अच्छी तरह पढ़ ले, अर्थात
प्यार का वास्तविक रूप पहचान ले तो वही सच्चा ज्ञानी होगा।
Additional Information
- कबीर साहेब या कबीर परमेश्वर 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे।
- वे हिन्दी साहित्य के भक्तिकालीन युग में परमेश्वर की भक्ति के लिए एक महान प्रवर्तक के रूप में उभरे।
- इनकी रचनाओं ने हिन्दी प्रदेश के भक्ति आंदोलन को गहरे स्तर तक प्रभावित किया।
Important Points
- गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पांय
- बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो बताय।
- पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
- ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।
- माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर,
- कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।
- जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,
- मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान
- माया मुई न मन मुआ, मरी मरी गया सरीर.
- आसा त्रिसना न मुई, यों कही गए कबीर .
भक्तिकाल पंक्तियाँ Question 9:
'प्रभु जी तुम चंदन हम पानी' इस पंक्ति के रचनाकार है?
Answer (Detailed Solution Below)
भक्तिकाल पंक्तियाँ Question 9 Detailed Solution
- "संत रैदास", यहाँ उचित विकल्प है, अन्य विकल्प असंगत है।
- रैदास यहाँ दासी, दास, चकोर किसी की भक्ति नहीं करना चाहते है।
- “प्रभु जी, तुम स्वामी हम दासा, ऐसी भक्ति करै रैदासा”
- रैदास सिर्फ राम को स्वामी मानकर और स्वयं को दास मानकर भक्ति करना चाहता है।
Additional Information
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भक्तिकाल पंक्तियाँ Question 10:
"ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय" यह पंक्ति किस कवि की है?
Answer (Detailed Solution Below)
भक्तिकाल पंक्तियाँ Question 10 Detailed Solution
"ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय" यह पंक्ति कबीर कवि की है
Key Pointsकबीर-
- जन्म-1398-1518 ई.
- गुरु-रामानंद
- ये सिकन्दर लोदी के समकालीन थे।
- भाषा-सधुक्कड़ी
- कबीर की वाणी का संग्रह उनके शिष्य धर्मदास ने बीजक(1464 ई.) नाम से किया था।
- इसके तीन भाग हैं-रमैनी,सबद और साखी।
Important Pointsजायसी-
- जन्म-1446-1542 ई.
- भक्तिकाल की सूफी काव्यधारा के मुख्य कवि है।
- रचनाएँ-
- पद्मावत
- आखिरी कलाम
- कहरनामा
- चित्ररेखा
- कान्हावत आदि।
ईश्वरदास-
- रचनाएँ-
- सत्यवती कथा आदि।
कुतुबन-
- इन्हें शेख़ क़ुतुबन के नाम से जाना जाता है।
- ये सूफी प्रेम काव्य परम्परा के कवि थे।
- इनका प्रसिद्ध ग्रंथ मृगावती है।
- कुतुबन शेख बुरहान के शिष्य थे।
- कुतुबन शेरशाह के पिता हुसैन शाह के समकालीन थे।